पत्नी को पहला थप्पड़ : Short Hindi Story

पत्नी को पहला थप्पड़

This story is a part of the book 'Jivan Ki Or' which is copyright protected and available to buy form here 
(यह कहानी हिन्दी किताब 'जीवन की ओर' से ली गई है जो की कॉपी राइट है, ऐसी ही ओर कहानियों के लिए आप इस किताब को यहाँ से पा सकते हैं )

सभी ने साथ बैठकर खाना खाया और उसके बाद सभी अपने – अपने कमरे में आराम करने चले गए । अंकिता अपने कमरे में जाकर लेटी ही थी की उसे कुछ आवाजें सुनाई देने लगी । ये आवाजें उनके बेटे और बहु के कमरे से आ रही थीं । अंकिता को लगा की उसका बेटा और बहु शायद मजाक करके हंस रहे हैं लेकिन दूसरे ही पल अंकिता को लगने लगा की उन दोनों के बीच कोई छोटी – मोटी नोक – झोंक हो गई होगी । धीरे – धीरे उन दोनों की आवाजें तेज होने लगी । 



अंकिता सोच में पड़ गई की उन दोनों के बीच बोले या नहीं क्योंकि पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था की उसके बेटे और बहु में कोई तकरार हुई हो। आवाजें धीरे – धीरे इतनी तेज हो गई की अंकिता से रहा नहीं गया और वह उठकर धीरे – धीरे उनके कमरे की ओर बढ़ने लगी।

प्रिया की तीखी आवाजें कमरे से बाहर तक आ रही थी और संदीप की आवाज से साफ पता चल रहा था की वह काफी गुस्सा था , तभी प्रिया बोली ‘संदीप मुझे तप्पड़ मत दिखाओ..’

इतना सुनते ही अंकिता समझ गई की कोई बड़ी बात हो गई है और वह तेजी से अंदर की ओर दौड़ पड़ी। अंदर जाकर उसने देखा की संदीप प्रिया को थप्पड़ मारने वाला होता है लेकिन इस से पहले की वह थप्पड़ मारता, अंकिता ने जाकर उसका हाथ पकड़ लिया और बिना कुछ कहे संदीप को एक थप्पड़ जड़ दिया ।

संदीप बहुत गस्सा था , वह चिल्लाकर अपनी माँ से बोला ‘आपको पता भी है क्या बात है ? बिना कुछ जाने आपने मुझ पर हाथ क्यों उठाया?’

इस पर अंकिता जी बोली ‘तुम दोनों के इस आपसी झगड़े में मैं नहीं पड़ना चाहती लेकिन तुमने मेरे बहु पर हाथ उठाने की हिम्मत कैसे की ? तुम दोनों के बीच कुछ भी बात हुई हो वो बात करके खत्म की जा सकती है .. आज तुमने बहु के साथ ऐसा व्यवहार करके मेरी परवरिश और इस घर के संसकारों को लज्जित किया है .. वह तुम्हारा हाथ विश्वास के साथ पकड़ कर इस घर में आई और तुम उस पर हाथ उठाने चले थे ?’

संदीप को शायद अपनी इस गलती का एहसास हो चला था , वह अपनी नजरें झुकाने लगा था और शर्म से झुकी आँखों से कभी अपनी पत्नी को देखता कभी अपनी माँ को ।

‘हर रिस्ते की एक मर्यादा होती है , तुम दोनों के बीच किसी बात को लेकर अनबन हुई है तो उसे आपस में बैठ कर बात करके खत्म करो ना की एक दूसरे के साथ इस तरहा झगड़ा और ऐसे अलफाज बोलकर जो बात खत्म होने के बाद भी चुभते रहे’ अंकिता ने अपनी बात पूरी ही की थी की प्रिया ये बात सुनकर उनके पास आई और बोली ‘माँ मुझे लगा था आप भी और सांस की तरहा अपने बेटे का ही पक्ष लोगी , लेकिन आपने मेरा पक्ष लिया आप मेरी सांस नहीं माँ हो’

‘बेटी मैंने किसी का पक्ष नहीं लिया है, मैं तो यह भी नहीं जानती तुम दोनों के बीच बात क्या हुई है और ना ही मैं जानना चाहती हूँ लेकिन जो गलत हो रहा था मैंने उसके खिलाफ बोला है , अगर तुम गलत होती तो मैं तुम्हें गलत बोलती। एक औरत होकर मैं एक औरत के साथ गलत होता नहीं देख सकती फिर गलत करने वाला मेरा अपना ही बेटा क्यों ना हो’ अंकित ने शांति से अपनी बात पूरी की।

अपनी माँ की बातें सुनकर संदीप अब शांत हो चुका था और उसे एहसास हुआ की वो क्या करने जा रहा था । उसने प्रिया से माफी मांगी और अपनी माँ का हाथ पकड़कर उन्हें शुक्रिया किया की आपने मुझे गलत करने से रोक दिया ।

इसके बाद अंकिता अपने कमरे में आ गई । संदीप और प्रिया कुछ देर तक एक दूसरे को देखते रहे । कुछ देर बाद संदीप ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा ‘मुझे माफ कर दो प्रिया , मैं भूल गया था की तुम भी मेरी तरहा बाहर जॉब भी करती हो और इसी के चलते छोटी – मोटी भूलचूक हो सकती है और फिर अपना काम मुझे खुद करना चाहिए । आगे से मैं अपना रुमाल चसमा सब खुद ही याद से लिया करूंगा , तुम्हें आगे से इसकी चिंता करने के जरूरत नहीं है’

‘जी नहीं मैं किस लिए हूँ मैं कल से याद से सब सामान बैग में रख दिया करूंगी , और रुमाल देना तो बिल्कुल भी नहीं भूलूँगी’ अपने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए प्रिया संदीप के एक दम पास आ गई और वो दोनों हंसने लगे । संदीप ने भी प्रिया को गले से लगा लिया । इसके बाद संदीप बाहर टहलने चला गया जहां उसके पिता जी भी टहल रहे थे ।

संदीप के पास आते ही उसके पिता ने कहा ‘बेटा जीवन में कभी भी अपनी पत्नी पर हाथ मत उठाना , आज तो तुम्हें तुम्हारी माँ ने रोक लिया लेकिन एक समय ऐसा भी आएगा जब हम नहीं रहेंगे, तब कौन रोकेगा ?’

संदीप दोनों हाथ जोड़ते हुए बोला ‘पिता जी मैं अपनी इस गलती के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ और आपसे वादा करता हूँ की आज के बाद कभी ऐसा नहीं होगा और आपके संस्कारों पर कभी उंगली नहीं उठने दूंगा’

कुछ देर बाद अंकिता और प्रिया भी बाहर आ गई । अंकिता मन ही मन सोच रही थी की उसको कितना अच्छा परिवार मिला है और उसको इनका अच्छे से ख्याल रखना है । आज की इस घटना के बाद से उसके दिल में इस परिवार के लिए इज्जत और भी बढ़ गई थी और अब उसे यह परिवार और भी अपना – सा लगाने लगा था ।

छोटी – छोटी बातों पर हमें आपस में झगड़ना नहीं चाहिए और कुछ बात हो भी जाए तो आराम से बातों से उसका समाधान ढूँढना चाहिए इस से हमारा परिवार और रिसता दोनों ही अच्छे से और अच्छे बनते चले जाते हैं । घर के बड़े बुजुर्गों को भी चाहिए की वो बिना किसी का पक्ष लिए गलत का विरोध करें इस से परिवार का माहौल खराब होने से बचा रहता है । अगर आज अंकिता संदीप को नहीं रोकती तो आज तो सिर्फ हाथ उठाया था कल को कोई बड़ी बात भी हो सकती थी और परिवार का माहौल प्यार – प्रेम सब खत्म हो सकता था ।  

ऐसी ही ओर कहानियों के लिए आप 'जीवन की ओर'  किताब को पढ़ें । 


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