पति से कहासुनी (रिस्तों को समझाती एक आपबीती सच्ची कहानी )

मेरे पति से थोड़ी कहासुनी हो गई थी । हालांकि गलती मेरी थी, मैंने उनकी माँ जी से तमीज से बात नहीं की जिसका अब मुझे ऐहशास है की मैं ही गलत थी । लेकिन माँ - बाप की लाड़ली थी न, इसीलिए वहाँ भी अपनी अकड़ चला रही थी, माँ जी बहुत अच्छी थीं उन्होंने तो मुझे माफ भी कर दिया था और कुछ कहा भी नहीं था लेकिन मेरे पति से वो सब बर्दाश्त नहीं हुआ । 

माँ जी हमेशा बिना माफी मांगे ही मुझे माफ कर दिया करती थी लेकिन मेरे पति को मेरा उनकी माँ से बतमीजी से बात करना बिल्कुल पसंद नहीं था और उसी कारण एक दिन झगड़ा हो गया । मुझे गुस्सा इसलिए आया था की माँ जी ने तो हमेशा की तरहा उस दिन भी मुझे बिना माफी मांगे ही माफ कर दिया था लेकिन मेरे पति अंकित तो जिद पर अड़े थे की मैं उनकी माँ से माफी मांगु। मैं बहुत जिद्दी थी , आज भी हूँ , माफी नहीं मांगी, अपने भाई को फोन कर दिया और अपने पिता के घर चली आई ।   


ज्यादा कुछ नहीं बस छोटी -सी कहासुनी थी लेकिन जब मेरी माँ ने मेरी आँखों मेँ आँसू देखे तो उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने बिना पूरी बात पिता जी को बताए अंकित को फोन लगा कर काफी भला - बुरा कह दिया । जब पापा आए तो तो उन्होंने सारी बात सुनी और मुझे काफी समझाया लेकिन अब माहौल काफी बिगड़ चुका था । जब पापा ने फोन किया तो अंकित ने फोन नहीं उठाया और ना ही वापस फोन किया क्योंकि हो सकता है वो मेरी माँ के कारण  गुस्सा थे । 


कुछ दिन तक कोई बात नहीं हुई लेकिन फिर एक दिन अचानक वो मेरे घर आ गए । एक बड़ा -सा केक हाथ मेँ लिए वो अंदर आए क्योंकि उस दिन मेरा जन्मदिन था । मैं मन ही मन काफी खुश हुई लेकिन बाहर से वही अड़ियल स्वभाव दिखा कर उन्हें अनदेखा करके दूसरे कमरे मेँ चली गई । मेरा जन्मदिन था इसलिए हमारे रिस्तेदार और परिवार वाले सभी आए हुए थे । 

वो मुझे वापस घर ले जाने के लिए ये थे लेकिन तब कुछ झूठे रिस्तेदारों और कुछ मायके के लोगों की बातों मेँ आकार मैं साथ नहीं गई और बात बढ़ने पर उल्टा उनको दहेज के झूठे केस मेँ फंसा दिया । लेकिन अब 9 साल हो चुके हैं और मैं अब भी घर बैठी हूँ। कभी - कभी ऐसा भी लगता है जैसे मैं अपने माता - पिता पर ही बोझ बन गई हूँ हालांकि मेरे माता - पिता मुझे बहुत प्यार से रखते हैं । लेकिन गुस्सा उन रिस्तेदारों और पड़ोस वालों पर आता है जिनकी बातों मेँ आकार मैंने अपने पति पर झूठा केस किया था और अब वही लोग आकर मुझे ज्ञान देते हैं । मेरे लगाए सभी केस झूठे थे इसलिए कुछ दिन बाद मेरे पति बरी हो गए और उनके घर वालों ने उनकी दूसरी शादी कर दी । 

एक छोटी - सी जिद्द के कारण मैंने अपनी पूरी जिंदगी बर्बाद कर ली , अब सोचती हूँ जब मेरे पति मुझे लेने ये थे तभी उनके साथ चली जाती तो आज मेरे भी एक दो बच्चे होते और मैं भी खुश होती अपनी सहेलीयों की तरहा , अपने पति के साथ । अब सोचती हूँ की शायद मुझे अपनी ही जिंदगी बर्बाद करने का जुनून - सा हो गया था , एक छोटी - सी बात को अपनी जिद्द के चलते कोर्ट तक पहुंचा दिया और खुद की ही जिंदगी बर्बाद कर ली । 

जिंदगी की यह ठोकर खाने के बाद मैं अपनी सहेलीयों और आप सभी को एक ही बात कहना चाहूँगी, साथ कोई नहीं देगा , सलाह सभी देंगे और आखिर मेँ आपकी ही जिंदगी बर्बाद हो जाएगी । किसी की बातों मेँ न आएं और जब कभी कोई कहासुनी हो भी जाए तो शांत दिमाग से सोच - विचार करने के बाद ही कोई फैसला लें और अगर जल्दी फैसला न लें सकें तो रिस्तों को खत्म करने की जगह दो - चार दिन के लिए रूठ जाएं । 

किसी की भावनाओं को आगे जरूर भेजें ताकि कोई गलत निर्णय लेने से पहले हजार बार सोचे और उनकी जिंदगी एक ऐसे मोड पे न पहुँच जाए जहां से ना लौट कर आया जा सके और ना कहीं आगे जाया जा सके । 



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