पैसा पेंसिल और खिलौना : भावात्मक हिन्दी कहानी
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पैसा पेंसिल और खिलौना : हिन्दी कहानी
मीना अब
बड़ी हो चुकी थी , करीब – करीब 18 साल की और वह काफी समझदार भी थी । वह अपने पापा की
लाड़ली थी और वह भी अपने पापा से बेहद प्यार करती थी । वह शांत स्वभाव और चंचल मन
की लड़की थी और उसे अपने माता – पिता के साथ समय बिताना सबसे ज्यादा प्रिय था
इसीलिए वह कभी भी अपने माता – पिता के साथ समय बिताने का कोई भी कोई मौका नहीं
चुकती थी । मीना का एक बड़ा भाई भी था जिसका नाम था राहुल , राहुल को दोस्तों के
साथ घूमना बहुत पसंद था और वह अकसर अपने पिता से पैसे माँग कर अपने दोस्तों के साथ
घूमने चला जाता था ।
राहुल तीन
दिन से अपने दोस्तों के साथ घूमने गया हुआ था और वह आज घर आने वाला था इसलिए मीना
के माता – पिता आँगन में बैठे दो घंटे से बाते करते हुए उसका इंतजार कर रहे थे और
मीना खाना बनाने में वयस्थ थी ।
‘जब कभी
राहुल घूमने जाता है तो वह बात ही नहीं करता फोन पर और मेरा तो दिल ही नहीं लगता
है उससे बातें किए बिना’ राहुल की माँ अंजली ने राहुल के पिता राजेश के ओर देखते
हुए कहा तो राजेश भी बोल उठा ‘सही कहती हो , उसका दिल दोस्तों में लगता है और
हमारी तो दुनिया ही वही है और फिर बाहर जाता है तो बात नहीं करता तो लगता है जैसे
पता नहीं कितनी सदियाँ हो गई हैं उससे बात हुए’
‘सही कहते
हो आप’ अंजली ने कहा ।
‘कोई बात
नहीं दिल छोटा मत करो अब आने ही वाला है ढेर सारी बातें करेंगे और पूछेंगे की कैसे
क्या मस्ती की उसने घूमने के दौरान’ राजेश ने इतना ही कहा था की सामने से राहुल
आता दिख गया और वे दोनों उसकी ओर खड़े होकर चल पड़े ।
‘अरे बेटा
आ गए तुम!’ इतना कहकर अंजली बेटे से लिपट गई । राजेश पास में ही खडा था ।
‘तुम्हारे
अंदर से शराब की बदबू क्यों आ रही है बेटा’ माँ ने पूछा तो राहुल के बोल लड़खड़ा गए
‘शराब की बदबू ? नहीं तो माँ ऐसी तो कोई बदबू नहीं या रही मुझे तो’
‘आप ही
देखो पास आकार’ इतना कहकर अंजली पीछे हट गई । राजेस पास गया तो वह समझ गया की
राहुल ने शराब पी रखी थी लेकिन वह यह सोचकर चुप रह गया की सुबह समझा देंगे की आगे
से कभी शराब ना पीना और बोला ‘अरे भागवान कहाँ
शराब की बदबू आ रही है, मुझे तो कोई शराब की बदबू नहीं आ रही’
‘अच्छा !
शायद मुझे ही वहम हो गया है , और बताओ कहाँ – कहाँ घूमे’ अंजली ने पुच्छा तो राहुल
चिल्ला उठा ‘आपने आते ही मूड ऑफ कर दिया अब आपको क्या बताऊँ ? मैं थका हुआ हूँ कल
बात करता हूँ’
‘अरे बेटा
तुम्हारी बहन ने तुम्हारी पसंद की खीर बनाई है वो तो खा लेना , उसके बाद सो जाना’
अंजली ने विनम्र भाव से कहा लेकिन राहुल गुस्से में था ‘मेरा पेट भरा हुआ है मैं
खाकर आया हूँ , सुबह बात करते है’
अंजली और
राजेस दोनों चुपचाप खड़े रह गए और उनकी आँखों में आँसू आ चुके थे तभी मीना वहाँ आई
और उसने देखा की उसके माता – पिता की आँखों में आँसू थे । वह उनके पास आई और अपनी
माँ को प्यार से छू कर पूछा की क्या हुआ, तो अंजली के आँसू नीचे गिर पड़े ‘कुछ नहीं
बेटी!’
जब मीना को
लगा की शायद माँ नहीं बता पायेंगी तो उसने अपने पिता से पूछा तो राजेस ने बताया
‘अरे कुछ नहीं बेटी , राहुल थका हुआ था तो सोने चला गया बिना बातें किए और
तुम्हारी माँ रो पड़ी’
‘अरे माँ
तुम भी ना.. भैया थक गए होंगे ना, कल सुबह
जी भरकर बातें कर लेना.. छोटी – सी बात पर
ऐसे बच्चे की तरहा रो रही हो , चुप हो जाओ और आओ खाना खा लो खाना बन गया है’ समझा
बुझाकर मीना उन्हें खाने की टेबल पर ले गई और खाना परोसा ।
लेकिन कोई
भी खाना नहीं खा रहा था ।
‘तुमने खीर
बनाई थी उसके लिए वो भी नहीं खाई उसने’ अंजली ने मीना की ओर देखते हुए कहा तो
राजेस बोल उठा ‘अरे नहीं खाई तो क्या हुआ सुबह फिर बना देगी अपनी बेटी उसके लिए
खीर..’
‘ओर क्या
माँ मैं सुबह फिर से बना दूँगी .. आप लोग खाना खाओ आराम से’ इतना कहकर मीना ने
अपनी माँ को खाना खिलाना शुरू कर दिया । मीना ने दोनों को खाना खिलाया और खुद भी
खाया और उसके बाद काफी देर तक वो सभी बातें करते रहे ।
बातें करते
– करते अब सब ठीक हो चुका था । अंजली और राजेस अब हंस – हंस कर बातें कर रहे थे और
बेटी के छोटे – छोटे चुटकुले सुनकर उनकी हंसी नहीं रुक रही थी । बातें करते – करते
मीना के मन में एक सवाल आया और वह पूछ उठी ‘पापा ! मुझे तो ऐसा कुछ भी याद नहीं
लेकिन क्या मैंने भी कभी आपको रुलाया है?’
अपनी बेटी
का यह सवाल सुनकर राजेस और अंजली खामोश हो गए लेकिन कुछ समय बाद राजेस प्यार से अपनी बेटी मीना का सिर सहलाते
हुए बोला ‘हाँ बेटी , मुझे अब भी याद है जब तुमने मुझे रुलाया था’
‘कब पापा?
मुझे तो ऐसा कुछ भी याद नहीं है’ मीना ने जानने की इच्छा दिखाई ।
‘जब तुम
करीब एक साल की थी बेटी , घुटनों पर सरकती थीं । तुम मेरे साथ सबसे ज्यादा खेलती
थीं इसलिए उस दिन भी तुम मेरे साथ खेल रही थीं.. खेलते –खेलते मेरे मन में एक
विचार आया और मैंने तुम्हारे सामने कुछ सिक्के (पैसे ) , पेंसिल और एक खिलौना गाड़ी
रख दी क्योंकि मैं देखना चाहता था की तुम तीनों में से किसे उठाती हो और तुम्हारे
इस चुनाव से मुझे पता चलता की तुम बड़ी होकर किसे अधिक महत्व दोगी । जैसे पैसे के
सिक्के मतलब संपति , पेंसिल मतलब बुद्धि , खिलौना गाड़ी मतलब आनंद ।
मैं बहुत
उत्सुक था यह सब जानने के लिए इसलिए मैंने सहजता से इन तीनों चीजों को तुम्हारे
सामने कुछ दूरी पर रख दिया और मैं पीछे होकर तुम्हारे सामने ही बैठ गया..’
‘फिर क्या
हुआ पापा’ मीना ने अपने पिता से पूछा ।
‘तुम
चुपचाप उन तीनों चीजों को देख रही थीं और मैं खामोशी से तुम्हें देख रहा था । तुम
अपने घुटनों और हाथों के सहारे से आगे बढ़ीं , मैं बहुत ध्यान से तुम्हारी हर एक
हरकत देख रहा था । आगे बढ़कर तुमने उन तीनों चीजों को इधर – उधर सरका दिया और उनके
बीच से निकलकर सीधा मेरी गोद में आकर बैठ गई । मुझे तब ध्यान आया की उन तीनों
चीजों के अलावा तुम्हारा एक चुनाव मैं भी तो हो सकता था और तुमने मुझे यानि अपने
माता – पिता को चुना । तभी तुम्हारा चार साल बड़ा भाई वहाँ आया और पैसे के सिक्के
उठाकर चला गया ।
वो पहली और
आखिरी बार था बेटी जब तुमने मुझे रुलाया और बहुत रुलाया था’ इतना कहते – कहते सभी
की आंखे नम हो चुकी थीं ।
बेटी पाकर दुखी होते हो
बेटा पाकर क्या चैन से सोते हो
बेटा – बेटी को भूलकर औलाद याद रखा करो
औलाद निकले अच्छी , ईश्वर का नाम जपा करो
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